Srinagar Beautiful Town Of Uttarakhand

श्रीनगर (Srinagar Garhwal) यह बेहद सुंदर शहर (Beautiful Town Of Uttarakhand) किसी भी तरह से परिचय का मोहताज नहीं है। यह अलकनंदा नदी के किनारे अपनी ऊँचे हिमालय के शानदार नज़ारो के लिए पूरे गढ़वाल (Garhwal) में जाना जाता है।

यह गढ़वाल पहाड़ियों में सबसे बड़ा शहर है। समुद्र तल से महज 560 मीटर की ऊँचाई पर स्थित, सुंदर अलकनंदा नदी के बाएँ किनारे पर बसा है यह शहर। श्रीनगर (Srinagar), राष्ट्रीय राजमार्ग NH58 पर ऋषिकेश से लगभग 111 कि.मी. की दूरी पर स्थित है और यह गढ़वाल के मैदानी इलाकों का सबसे आखिरी शहर है, इसके बाद पहाड़ शुरू होते हैं!

श्रीनगर, कोटद्वार ( Kotdwar ) (गढ़वाल का द्वार) के सड़क मार्ग से भी पहुँचा जा सकता है, कोटद्वार से श्रीनगर (Srinagar Garhwal) की दूरी लगभग 134 कि.मी. है और यहां पहुँचने में अधिकतम 5 घंटे लगते हैं। यह बहुत आश्चर्य की बात है कि उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में सबसे बड़ा शहर अभी तक अनछुआ है, और अधिकांश पर्यटकों और यात्रियों की नज़रों से दूर है ।

उत्तराखंड का खूबसूरत शहर श्रीनगर (Srinagar Beautiful Town Of Uttarakhand)

Srinagar Garhwal
Srinagar Garhwal

पौराणिक काल से ही उत्तराखंड के गढ़वाल  क्षेत्र में स्थित श्रीनगर (Srinagar Garhwal) का प्राचीन शहर, जो बद्रीनाथ के मार्ग पर स्थित है, निरंतर बदलाव के बाद भी अपने अस्तित्व को बचाये रखा है। श्रीपुर या श्रीक्षेत्र कहे जाने इस नगर के बदलाव सहित श्रीनगर (Srinagar Garhwal), टिहरी के अस्तित्व में आने से पहले एकमात्र शहर था।

अलकनंदा नदी के तट पर होने के कारण कई बार विनाशकारी बाढ़ का सामना करने के बाद अंग्रेजों के शासनकाल में यह एक सुनियोजित शहर के रूप में उदित हुआ और आज यह गढ़वाल क्षेत्र का सर्वश्रेष्ठ शिक्षण केंद्र के लिए स्थापित है।

श्रीनगर विस्थापन एवं स्थापना के कई दौर से गुजरने की कठिनाई के बावजूद पौड़ी गढ़वाल जिले के इस शहर ने कभी भी अपना उत्साह नहीं खोया और बद्रीनाथ एवं केदारनाथ धामों के रास्ते में तीर्थयात्रियों की विश्राम स्थली एवं शैक्षणिक केंद्र बना रहा है और अब भी वह स्वरूप विद्यमान है।

श्रीनगर (Srinagar Garhwal) इसे गढ़वाल के एजुकेशन हब के रूप में भी जाना जाता है। अपनी कम ऊँचाई और अलकनंदा नदी के तट पर होने के कारण यहां गरमी भी अधिक पड़ती है और यही बात इसे घाटी का एक महत्वपूर्ण शहर और बाज़ार बनाती है। यह शहर ज्यादातर अपने समृद्ध ऐतिहासिक महत्व और अपने अलग-अलग मंदिरों के लिए जाना जाता है। श्रीनगर के स्थानीय आकर्षणों तथा आस-पास के घूमने योग्य स्थान यहां के समृद्ध इतिहास से जुड़े हैं।

चूकि यह गढ़वाल के पंवार राजवंश के राजाओं की राजधानी थी, इसलिए श्रीनगर उन दिनों सांस्कृतिक तथा राजनीतिक गतिविधियों का केन्द्र था, जिसे यहां के लोग गौरव से याद करते है। पौराणिक तौर पर यह आदी शंकराचार्य से भी जुड़ा है। इस शहर के अतीत से आज तक में कई नाटकीय परिवर्तन हुए हैं, जहां अब गढ़वाल विश्वविद्यालय के केम्पस तथा कई खोज संस्थान हैं। यहां की महत्ता इस तथ्य में भी है कि आप यहां से चार धाम की यात्रा आसानीपूर्वक कर सकते हैं। श्रीनगर से अशोककालीन शिलालेख मिला है. लेकिन इसके अलावा भी यहाँ बहुत कुछ है !

श्रीनगर का इतिहास (History of Srinagar)

पौराणिक किवदंतियो के अनुसार इसे श्री क्षेत्र कहा गया है जो भगवान शिव की पसंद है। कहा जाता है कि महाराज सत्यसंग को यहां गहरी तपस्या के बाद श्री विद्या का वरदान मिला जिसके बाद उन्होंने कोलासुर राक्षस का वध किया। उन्होंने एक यज्ञ का आयोजन कर वैदिक परंपरानुसार शहर की पुनर्स्थापना की। श्री विद्या की प्राप्ति ने इसे तत्कालीन नाम श्रीपुर दिया। प्राचीन भारत में यह सामान्य था कि शहरों के नामों के पहले “श्री” शब्द लगाये जांय क्योंकि यह लक्ष्मी का परिचायक है, जो धन की देवी है।

गढ़वाल के 17 पंवार राजाओं का आवास होने के नाते श्रीनगर (Srinagar) एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक तथा प्रशासनिक केंद्र रहा है। यही वह जगह है जहां निपुण चित्रकार मौलाराम के अधीन चित्रकारी स्कूल विकसित हुआ। यहां के पुराने राजमहलों में गढ़वाली पुरातत्व के सर्वोत्तम उदाहरण मौजूद हैं तथा यहां राजाओं ने कला को प्रोत्साहित एवं विकसित किया। आज उसी वैधता को यह शहर आगे बढ़ाता है और ज्ञान का प्रमुख स्थल बना है, जहां गढ़वाल विश्वविद्यालय स्थित है।

श्रीनगर (Srinagar Garhwal) गढ़वाल, उत्तराखण्ड की प्राचीन राजधानी हुआ करता था। यह नगर गंगा तट पर रिथत है। सन 1894 ई. में बिरही नदी की बाढ़ में यह नगर बह गया था। नए वर्तमान श्रीनगर को 1895 ई. में पाॅ नामक एक अंग्रेज़ ने प्राचीन नगर के निकट ही बसाया था। श्रीनगर के आस-पास कई प्राचीन मंदिर हैं। सन 1517 में श्रीनगर की केंद्रीय स्थिति को देखते हुए गढ़वाल के शासक, अभय पाल ने गढ़वाल की राजधानी देवलगढ़ से यहां स्थानांतरित की थी।

1803 में गोरखा आक्रमण तक गढ़वाल के राजाओं ने श्रीनगर से ही गढवाल पर शासन किया। गोरखा राज में भी यह क्षेत्र का प्रशासनिक मुख्यालय बना रहा। गोरखा राज के समय में गढ़वाल के महत्वपूर्ण नगरों का ह्रास होता चला गया, और वे गावों में बटकर रह गए। बाद के वर्षों में देहरादून, हरिद्वार तथा कोटद्वार जैसे नगरों तक रेल की पहुँच ने श्रीनगर (Srinagar) के वाणिज्यिक महत्त्व को भी धीरे धीरे समाप्त कर दिया। श्रीनगर का पुराना नगर अलकनन्दा नदी के तट पर नीचे की ओर बसा था समतल होने के कारण यह क्षेत्र पूरे गढ़वाल से लेकर कुमाऊं तक का एक प्रमुख वाणिज्यिक केंद्र था 1803 में गढ़वाल में आये एक भीषण भूकंप ने इस नगर को तहस नहस कर दिया। इसके बाद क्षेत्र में गोरखा आक्रमण हो गया, जिस कारण इस नगर की दोबारा पुनर्स्थापना नहीं हो पायी। 1840 में जब ब्रिटिश शासन में गढ़वाल जिले का गठन हुआ, तो उसका मुख्यालय पौड़ी में बनाया गया।

श्रीनगर के प्रमुख स्थल (Major Places of Srinagar)

केशवराय मठ मंदिर (Keshavrai Math Temple) : ये भगवान विष्णु और देवी सरस्वती का एक प्राचीन मंदिर है अलकनन्दा तट पर स्थित केशोराय मठ उत्तराखण्ड शैली में बना हुआ अत्यन्त सुन्दर मन्दिर है। बड़ी-बड़ी प्रस्तर शिलाओं से बनाये गये इस मन्दिर की कलात्मकता देखते ही बनती है। कहा जाता है कि संवत्‌ 1682 में इस मन्दिर का निर्माण महीपतिशाह के शासनकाल में केशोराय ने कराया था, इन्ही के नाम पर यह “केशोराय मठ” कहलाया। ये मंदिर अपनी स्थापत्य कला और सुंदरता के लिए जाना जाता है।

धारी देवी मंदिर (Dhari Devi Temple) : श्रीनगर (Srinagar) से लगभग 19 कि.मी. दूर स्थित यह मंदिर, क्षेत्र के सबसे लोकप्रिय मंदिरों में से एक है। मंदिर श्रीनगर-बद्रीनाथ राजमार्ग पर कालिया सौर तक स्थित है। गढ़वाल के लोगों के लिए आस्था का केंद्र, ये मंदिर अलकनंदा नदी के बीच में स्थित है।

Dhari Devi Temple Shrinagar
Dhari Devi Temple Shrinagar

गोला बाज़ार (Gola Market) : श्रीनगर (Srinagar) गढ़वाल उत्तराखंड के सबसे बड़े बाजारों में से एक, यह बाज़ार घाटी के लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण व्यावसायिक जगह है। अलग-अलग रेस्तरां से लेकर आप यहाँ पारंपरिक गढ़वाली कपड़ों, फलों और सब्जियों की कई दुकानें छान सकते है । यकीन मानिए आपको जो भी चीज़ चाहिए वह यहाँ मिल ही जाएगी ।

पहाड़ी की चोटी (The Hill Top) : नाम से ही पता चल रहा है, कि यह एक पहाड़ी की चोटी पर एक जगह है, जहाँ से श्रीनगर शहर के साथ-साथ पूरी घाटी और नदी के शानदार नज़ारे देखने को मिलता है । यहाँ तक पहुँचने के लिए पास की सड़क से एक छोटा सा ट्रेक करके ऊपर पहाड़ी की चोटी पर जाना होता है।

कमलेश्वर/सिद्धेश्वर मंदिर (Kamleshwar / Siddheshwar Temple) : यह श्रीनगर (Srinagar) का सर्वाधिक पूजित मंदिर है। कहा जाता है कि जब देवता असुरों से युद्ध में परास्त होने लगे तो भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र प्राप्त करने के लिये भगवान शिव की आराधना की। उन्होंने उन्हें 1,000 कमल फूल अर्पित किये जिससे मंदिर का नाम जुड़ा है तथा प्रत्येक अर्पित फूल के साथ भगवान शिव के 1,000 नामों का ध्यान किया। उनकी जांच के लिये भगवान शिव ने एक फूल को छिपा दिया। भगवान विष्णु ने जब जाना कि एक फूल कम हो गया तो उसके बदले उन्होंने अपनी एक आंख चढ़ाने का निश्चय किया। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें सुदर्शन चक्र प्रदान कर दिया, जिससे उन्होंने असुरों का विनाश किया।

बैकुंठ चतुर्दशी मेला (Baikunth Chaturdashi Fair) : ये गढ़वाल क्षेत्र का सबसे लोकप्रिय त्यौहार है । ये वार्षिक मेला दिवाली के 14वें दिन अक्टूबर-नवंबर के महीने में आता है। अपने धार्मिक महत्व के अलावा ये मेला अब सांस्कृतिक उत्सव के रूप में भी लोकप्रिय हो रहा है , जिसमें 4-5 दिनों मे अलग-अलग सांस्कृतिक कार्यक्रमों और खेल प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता है। इस त्यौहार का गढ़वाल के लोगों के लिए बहुत ज्यादा महत्व है और पूरा शहर इन दिनों रोशनी से जगमगा जाता है।

श्री यंत्र टापू (Sri Yantra Tapu) : ये शहर की एक छोटा सी जगह है, जहाँ से शहर को अपना नाम मिला है । अलकनंदा नदी के बीच में एक छोटा सा एरिया, जो एक प्रकार का द्वीप सा लगता है । माना जाता है कि इस जगह में दिव्य ऊर्जा है और यह श्रीनगर शहर के लिए एक महत्वपूर्ण मंदिर है। अपने पौराणिक और दैवीय महत्व के अलावा, यह जगह चारों तरफ नदी के साफ नीले पानी से घिरा होने और गर्म धूप का मजा लेने के लिए एक शानदार जगह है !

हेमवती नन्दन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय (Hemvati Nandan Bahuguna Garhwal University)

भारत के उत्तराखण्ड राज्य का एक केंद्रीय विश्वविद्यालय है। 1972-73 में उत्तराखंड विश्वविद्यालय की स्थापना को लेकर जनआंदोलन हुआ। गढ़वाल विश्वद्यिालय (Garhwal University) की स्थापना श्रीनगर में 1973 में हुई थी।

अप्रैल 1989 में इसका नाम परिवर्तिक कर हेमवती नंदन बहुगुणा विश्वविद्यालय कर दिया गया था। केंद्रीय विश्वविद्यालय बनने से पहले इस विश्वविद्यालय में कुल 3 परिषद श्री नगर मुख्यालय का बिरला परिसर, पौड़ी का डॉ गोपाल रेड्डी परिसर तथा टिहरी का स्वामी रामतीर्थ बादशाही थौल परिसर थे।

15 जनवरी 2009 को केंद्रीय विश्वविद्यालय बनने के बाद यह टिहरी स्थति परिसर का अलग कर दिया गया है। केन्द्रीय विश्वविद्यालय बन जाने के बाद यहाँ के युवाओं को बेहतर शिक्षा सुविधाएँ मुहैया हने की उम्मीद बढ़ गयी थी। विश्वविद्यालय में कला, बाणि’य, विज्ञान, किर्शी, शिक्षा एवं अंतर विध्यावरती अनौपचारिक शिक्षाएं के अंतर्गत स्नातक, स्नातककोतर शिक्ष्ण एवं सौधकार्य किये जा रहे हैं।

HNBGU Chauras Campus Srinagar
HNBGU Chauras Campus Srinagar

श्रीनगर कैसे पहुंचे (How To Reach Srinagar)

  • एयर से : श्रीनगर (Srinagar) का निकटतम हवाई अड्डा जॉली ग्रांट हवाई अड्डा, देहरादून लगभग 125 किमी दूरी पर स्थित है। देहरादून से नियमित टेक्सी, सरकारी और गैर सरकारी बसे श्रीनगर के लिए चलते रहते है।
  • रेल से : श्रीनगर (Srinagar) के निकटतम रेलवे स्टेशन कोटद्वार और ऋषिकेश हैं, लेकिन ये दोनों ही छोटे स्टेशन हैं और ज़्यादातर प्रमुख ट्रेनें यहाँ नहीं रुकती हैं । श्रीनगर का निकटतम प्रमुख रेलवे स्टेशन हरिद्वार है , जो शहर से लगभग 130 कि.मी. की दूरी पर स्थित है।
  • सड़क से : श्रीनगर (Srinagar) राष्ट्रीय राजमार्ग NH58 पर स्थित है जो दिल्ली को भारत-तिब्बत सीमा के पास उत्तराखंड में बद्रीनाथ और माना दर्रा से जोड़ता है। हरिद्वार या ऋषिकेश दोनों ही जगहों से श्रीनगर जाने वाली स्थानीय बसें में आसानी से मिल जाती है । दिल्ली और अन्य राज्यों शहरो से श्रीनगर के लिए कोई सीधी बसें नहीं चलते हैं तो दोनों शहरों में से ही किसी एक में अपनी बस, टेक्सी बदलनी होती है।

गर्मियों के महीनों में तीर्थयात्रा के मौसम में हरिद्वार और ऋषिकेश के माध्यम से नई दिल्ली से बद्रीनाथ जाने वाले सभी बसों और वाहनों के अलावा रुद्रप्रयाग, कर्णप्रयाग, चमोली ( Chamoli ), जोशीमठ और आगे उत्तर में श्रीनगर से होकर जाते हैं। ऋषिकेश श्रीनगर की सड़क यात्रा का प्रमुख प्रारंभिक स्थान है।श्रीनगर, पौड़ी से सड़क मार्ग द्वारा जुड़ा हुआ है, जो कि राष्ट्रीय राजमार्ग NH119 से सतपुली कोटद्वार तक पहुंचा जाता है।

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