Kedarnath Mandir

केदारनाथ मंदिर (Kedarnath Mandir)  एक हिंदू मंदिर है जो भगवान शिव (महादेव) को समर्पित है। केदारनाथ मंदिर  (केदारनाथ धाम) मंदाकिनी नदी के पास गढ़वाल हिमालय श्रृंखला पर भारत के उत्तराखंड राज्य के रुद्रप्रयाग जिले मे समुद्र तल से 3,583 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। केदारनाथ के ऐतिहासिक नाम को ‘केदारखंड के भगवान‘ के रूप भी जाना जाता है। उत्तराखंड में स्थित भगवान शिव के प्रमुख द्वादश (12 ) ज्‍योतिर्लिंग में से एक केदारनाथ स्थित है और इसकी मान्‍यता सभी ज्‍योतिर्लिंगों में सबसे ज्‍यादा है। यहां भगवान शिवलिंग की पूजा विग्रह रूप में की जाती है जो बैल की पीठ जैसे त्रिकोणाकार रूप में है। शिवलिंग का यह रहस्‍य पांडवों से जुड़ा हुआ है। बर्फ से घनी हुई विशाल सफेद पहाड़ों की तेजस्वी पृष्ठभूमि के साथ, केदारनाथ मंदिर (Kedarnath Mandir) एक आकर्षक दृश्य प्रस्तुत करता है। इसके चारों तरफ यह शांति और पवित्रता का एक आभा है। केदारनाथ का मंदिर एक हजार वर्ष से अधिक पुराना माना जाता है। मंदिर अपनी शैली और वास्तुकला में शानदार है। यह सुनिश्चित नहीं है कि मूल केदारनाथ मंदिर (Kedarnath Mandir) का निर्माण किसने और कब किया था। “केदारनाथ” नाम का अर्थ है “क्षेत्र का स्वामी” यह संस्कृत के शब्द केदार (“क्षेत्र”) और नाथ (“भगवान”) से निकला है। धर्मशास्त्र के अनुसार, भगवान शिव जी नार-नारायण के अनुरोध पर यहां निवास करने के लिए सहमत हुए थे। कुरुक्षेत्र युद्ध के बाद, पांडव भाई, ऋषि व्यास की सलाह पर शिव से मिलने यहां आए थे, क्योंकि वे युद्ध के दौरान अपने परिजनों की हत्या के लिए क्षमा चाहते थे।

“महाद्रिपार्श्वे च तटे रमन्तं सम्पूज्यमानं सततं मुनीन्द्रैः।

सुरासुरैर्यक्षमहोरगाद्यै: केदारमीशं शिवमेकमीडे॥”

अर्थात : जो भगवान् शंकर पर्वतराज हिमालय के समीप मन्दाकिनी के तट पर स्थित केदारखण्ड नामक श्रृंग में निवास करते हैं, तथा मुनीश्वरों के द्वारा हमेशा पूजित हैं, देवता-असुर, यक्ष-किन्नर व नाग आदि भी जिनकी हमेशा पूजा किया करते हैं, उन्हीं अद्वितीय कल्याणकारी केदारनाथ नामक शिव की मैं प्रणाम करता हूँ ।

Kedarnath Mandir (केदारनाथ मंदिर)
Kedarnath Mandir (केदारनाथ मंदिर)

 

बारह ज्योतिर्लिंग में सम्मिलित होने के साथ चार धाम और पंच केदार में से एक केदारनाथ मंदिर, यहाँ की प्रतिकूल जलवायु के कारण यह मंदिर अप्रैल से नवंबर माह के मध्‍य ही दर्शन के लिए खुलता है।

केदारनाथ मंदिर की कथा ( Legend of Kedarnath Mandir) 

उत्तराखंड के चार धामों में सर्वाधिक ऊचाई पर स्थित धाम केदारनाथ है। केदारनाथ शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है । भारत के 4 धाम ( पूर्व में – जगन्नाथ , पश्चिम में- द्वारिका , उत्तर में बद्रीनाथ , दक्षिण में- रामेश्वरम ) की स्थापना करने के बाद शंकराचार्य जी ने केदारनाथ मंदिर का निर्माण कराया था और केदारनाथ मंदिर के पीछे शंकराचार्य जी की समाधि है। यह मंदिर कत्युरी निर्माण शैली का है । शीतकाल मे यह स्थान पूर्णरूप से हिमाछादित रहता है , इसलिए शीत काल में केदारनाथ की डोली को ओंमकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ में रखा जाता है । यहां के पुजारी दक्षिण भारत के रावल होते है । यहां पर कुछ पवित्र कुण्ड है , जैसे गौरी कुण्ड, पार्वती कुण्ड, हंस कुण्ड आदि । भीमगुफा, ब्रह्म गुफा भी केदारनाथ में ही स्थित है । इस मन्दिर की आयु के बारे में कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है, पर एक हजार वर्षों से केदारनाथ एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल रहा है ।

Kedarnath Mandir Kedar Ghati
Kedarnath Mandir Kedar Ghati

किवदंतियो के अनुसार हिमालय राज्य उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में केदार के चोटी पर भगवान विष्णु के अवतार महातपस्वीनर और नारायण ऋषि तपस्या करते थे। उनकी आराधना से प्रसन्न होकर भगवान शंकर प्रकट हुए और उनके प्रार्थनानुसार ज्योतिर्लिंग के रूप में सदा वास करने का वर प्रदान किया। यह स्थल केदारनाथ पर्वतराज हिमालय के केदार नामक पहाड़ की चोटी पर स्थित है।

भगवान शिव जी के प्रमुख पंचकेदार मंदिरो की कथा में मान्य है कि महाभारत के युद्ध में विजयी होने के बाद पांडव भ्रातृ – हत्या के पाप से मुक्ति पाना चाहते थे । जिसके लिए वे भगवान शंकर का आशीर्वाद लेना चाहते थे , लेकिन भगवान शंकर यह सब देखकर पांडवो से रुष्ट हो गए थे। भगवान शंकर के दर्शन के लिए पांडव काशी गए , परन्तु वे उन्हें वहां नहीं मिले। पांडवो उन्हें खोजते हुए हिमालय तक आ पहुंचे । भगवान शंकर पांडवों को दर्शन देना चाहते थे, इसलिए वे वहां से अंतर्ध्यान हो कर केदार चले गए । लेकिन पांडव उनका पीछा करते – करते केदार जा पहुंचे । यह बात भगवान शिव जी को ज्ञात हो गई, की पांडव केदार आ चुके हैं, तत्पश्चात उन्होंने बेल का रूप धारण कर लिया और वे अन्य पशुओं में जा मिले। पांडवों को संदेह हुआ की भगवान शिव पशु का रूप धारण कर चुके है। अत : भीम ने अपना विशाल रूप धारण कर दो पहाडों पर अपने पैर फैला दिए। अन्य सब गाय बैल तो भीम के पैरों के बीच से निकल गए, परन्तु भगवान शिव जी , जिन्होंने बेल का रूप धारण किया था वह पेर के नीचे से जाने को तैयार नहीं हुए। भीम बलपूर्वक इस बेल पर झपटे, लेकिन बेल भूमि में अंतर्ध्यान होने लगा। तब भीम ने बैल की पीठ पकड़ ली। भगवान शिव जी पांडवों की यह भक्ति, दृढ संकल्प देख कर प्रसन्न हो गए। उन्होंने तत्काल दर्शन देकर पांडवों को पाप मुक्त कर दिया। उसी समय से भगवान शंकर बैल की पीठ की आकृति – पिंड के रूप में श्री केदारनाथ में पूजे जाते हैं । ऐसा माना जाता है कि जब भगवान शंकर बेल के रूप में अंतर्ध्यान हुए, तो उनके धड़ से ऊपर का भाग काठमाण्डू में प्रकट हुआ। जहां अब पशुपतिनाथ का प्रसिद्ध मंदिर स्थित है। शिव जी की भुजाएं तुंगनाथ मंदिर में, मुख रुद्रनाथ मंदिर में , नाभि मदमदेश्वर मंदिर में और जटा कल्पेश्वर मंदिर में प्रकट हुए । इसलिए इन चार स्थानों सहित श्री केदारनाथ को पंचकेदार कहा जाता है । यहां शिवजी के भव्य मंदिर बने हुए हैं ।

2013 केदारनाथ आपदा (2013 Kedarnath disaster)

उत्तराखंड राज्य के अन्य हिस्सों के साथ 16 और 17 मई 2013 को अभूतपूर्व बाढ़ से केदारनाथ घाटी का क्षेत्र प्रभावित हुआ था 16 जून को केदारनाथ मंदिर (Kedarnath Mandir) के पास तेज़ बारिश के साथ साथ केदार घाटी में भूस्खलन होने लगा। भारी बारिश के कारण केदारघाटी में स्थित चोरबाड़ी ताल (केदारनाथ और कीर्ति स्तम्भ चोटियों की तलहटी में स्थित) और गांधी ताल से भारी मात्रा में गाद निकलना शुरू हो गया, जिसमें गाद, चट्टानें और बड़े पत्थर भारी मात्रा में पहाड़ से आने लगे थे, जिससे केदार घाटी में मंदिर के साथ साथ जन-माल को भी नुक्सान पंहुचा। अगर आपको केदारनाथ आपदा का दौर याद है, तो आपको केदारनाथ की भीम शिला के बारे में भी पता होगा। इसे जादू कहें या संयोग कहें, लेकिन 2013 की भयानक भीषण आपदा के दौरान जहां उत्तराखंड बह रहा था, वहीं 2013 की आई आपदा के समय केदारनाथ मंदिर में एक चमत्कार भी हुआ। यह आश्चर्य की बात है कि एक शिलाखण्ड कैसे महाआपदा के रुख को बदलने के लिए केदारनाथ मंदिर के ठीक पीछे आ खड़ा होता है। एक बड़ा पत्थर मंदिर के पीछे पानी के साथ आया और मंदिर के थोड़े पीछे रुक गया। जब पानी और मलवे का बहाव आया था तब उस चट्टान ने बहाव को दो तरफ मोड़ दिया और मंदिर को आंच तक न आने दी। इस चमत्कारी पत्थर का नाम तब से “भीम शिला” रख दिया गया । इससे भी अधिक विस्मयकारी तथ्य ये कि उस शिला का आकार मंदिर की चौड़ाई के बिल्कुल बराबर है, जिससे मंदिर किसी विशेष क्षति का शिकार हुए बिना अपनी जगह मजबूती से अवस्थित है।

केदारनाथ मंदिर वास्तुशिल्प/ बनावट (Kedarnath Temple Architecture / Design)

केदारनाथ मंदिर (Kedarnath Mandir) वास्तुशिल्प की एक छह फीट ऊँचे चौकोर चबूतरे पर बना हुआ है। केदारनाथ मंदिर में मुख्य भाग मण्डप और गर्भगृह के चारों ओर प्रदक्षिणा पथ है। बाहर प्रांगण में नन्दी बैल वाहन के रूप में विराजमान हैं। मन्दिर का निर्माण किसने कराया, इसका कोई प्रामाणिक उल्लेख नहीं मिलता है, लेकिन हाँ ऐसा भी कहा जाता है कि इसकी स्थापना आदि गुरु शंकराचार्य ने की थी। केदारनाथ मंदिर कत्यूरी शैली द्वारा निर्मित है। मंदिर की पूजा श्री केदारनाथ द्वादश ज्योतिर्लिगों में से एक माना गया है। प्रात:काल में शिव-पिण्ड को प्राकृतिक रूप से स्नान कराकर उस पर घी-लेपन किया जाता है। तत्पश्चात धूप-दीप जलाकर आरती उतारी जाती है। इस समय यात्री-गण मंदिर में प्रवेश कर पूजन कर सकते हैं, लेकिन संध्या के समय भगवान का श्रृंगार किया जाता है। उन्हें विविध प्रकार के चित्ताकर्षक ढंग से सजाया जाता है। भक्तगण दूर से केवल इसका दर्शन ही कर सकते हैं। केदारनाथ मंदिर (Kedarnath Mandir) के पुजारी दक्षिण भारत के मैसूर के जंगम ब्राह्मण ही होते हैं।

केदारनाथ यात्रा (Kedarnath Yatra) 

उत्तराखण्ड में बद्रीनाथ और केदारनाथ ये दो प्रधान तीर्थ हैं, दोनो के दर्शनों का बड़ा ही महत्व है। केदारनाथ के संबंध में लिखा है कि जो व्यक्ति केदारनाथ के दर्शन किये बिना बद्रीनाथ की यात्रा करता है, उसकी यात्रा निष्फल जाती है और केदारनाथ पथ सहित नर-नारायण-मूर्ति के दर्शन का फल समस्त पापों के नाश पूर्वक जीवन मुक्ति की प्राप्ति बतलाया गया है। केदारनाथ धाम की यात्रा उत्तराखंड की पवित्र छोटा चार धाम यात्रा के महत्वपूर्ण चार मंदिरों में से एक है। छोटा चार धाम यात्रा हर वर्ष अप्रैल या मई के महीने में शुरू आयोजित की जाती है। केदारनाथ यात्रा के अलावा अन्य मंदिर बद्रीनाथ मंदिर, गंगोत्री मंदिर, और यमुनोत्री मंदिर हैं। केदारनाथ यात्रा में शामिल होने के लिए हर वर्ष मदिर के खुलने की तिथि तय की जाती है। मंदिर के खुलने की तिथि हिंदू पंचांग की गणना के बाद ऊखीमठ में स्थित ओंकारेश्वर मंदिर के पुजारियों द्वारा तय की जाती है।

केदारनाथ मंदिर (Kedarnath Mandir) की खुलने की तिथि अक्षय तृतीया के शुभ दिन और महा शिवरात्रि पर हर वर्ष घोषित की जाती है। और केदारनाथ मंदिर की समापन तिथि हर वर्ष नवंबर के आसपास दिवाली त्योहार के बाद भाई दूज के दिन होती है। इसके बाद मंदिर के द्वार शीत काल के लिए बंद कर दिए जाते हैं। और केदारनाथ की पंचमुखी प्रतिमा को ‘उखीमठ’ में लाया जाता हैं। इसी प्रतिमा की पूजा यहाँ भी रावल जी करते हैं।

केदानाथ मंदिर कैसे पहुंचे (How to reach Kedanath Temple)

ऋषिकेश – देवप्रयाग – श्रीनगर – रुद्रप्रयाग – अगस्तमुनि – चंद्रपुरी – गुप्तकाशी -फाटा – गौरीकुंड – केदारनाथ

  • सड़क से : गौरीकुंड के निकटम वह स्थान है जहाँ से केदारनाथ (Kedarnath Mandir) के लिए सड़क समाप्त होती है और गौरीकुंड से 14 किमी की ट्रेक केदारनाथ के लिए शुरू होती है। गौरीकुंड भारत के उत्तराखंड और उत्तरी राज्यों के प्रमुख स्थलों के साथ सड़कों द्वारा जुड़ा हुआ है। दिल्ली से उत्तराखंड के प्रमुख स्थलों जैसे देहरादून, ऋषिकेश, हरिद्वार, पौड़ी, टिहरी, उत्तरकाशी, श्रीनगर, चमोली, देवप्रयाग आदि से गौरीकुंड के लिए बसें और टैक्सी आसानी से उपलब्ध रहते हैं। गौरीकुंड राष्ट्रीय राजमार्ग 109 पर स्थित है जो रुद्रप्रयाग को केदारनाथ से जोड़ता है।
 Kedarnath Mandir Map
Kedarnath Map
  • रेल से : केदारनाथ के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन ऋषिकेश, हरिद्वार, और देहरादून है। ऋषिकेश रेलवे स्टेशन NH58 (गाजियाबाद-दिल्ली-बद्रीनाथ) पर केदारनाथ से 216 किमी पहले स्थित है। ऋषिकेश भारत के अन्य प्रमुख स्थलों के साथ रेलवे नेटवर्क के द्वारा जुड़ा हुआ है। ऋषिकेश से गौरीकुंड तक जाने के लिए सड़क माध्यम है।
  • फ्लाइट से : जॉली ग्रांट हवाई अड्डा केदारनाथ का निकटतम हवाई अड्डा है जो कि 238 km की दूरी पर स्थित है। जॉली ग्रांट हवाई अड्डा दैनिक उड़ानों के साथ दिल्ली से जुड़ा हुआ है। जॉली ग्रांट एयरपोर्ट से गौरीकुंड के लिए टैक्सी बस आदि वाहन उपलब्ध रहते हैं।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *