आयुर्वेद उत्तराखंड के पहाड़ी हिमालयी इलाकों में पाई जाने वाली लांग, तुलसी, आंवला, काला जीरा या फिर बुरांश जैसी आदि (10 Famous Ayurvedic Herb of Uttarakhand) यह 10 प्रसिद्ध बेशकीमती जड़ी-बूटियां आपको चलते चलते खेतों में या फिर यह दैनिक खानपान में आसानी से उपलब्ध रहते हैं। मौसमी बदलाव के साथ उपजने वाली बीमारियों से पार पाने के लिए कुदरत ने हमें सौगात के रूप में फल, सब्जियां, वनस्पतियां व जड़ी-बूटियां दी है। यही वजह है कि हमारा आयुर्वेद सदियों से हमें यह शस्वत सुरक्षा कवच प्रदान करता आया है।
आयुष प्रदेश उत्तराखंड (Ayurvedic Uttarakhand) का अतीत गौरवमयी गाथाओं से भरा है | यहां की आवोहवा (पानी व शुद्ध हवा), जैविक मोटे अनाज वाले खाद्यान्न से लेकर तमाम जड़ी-बूटियों व वनस्पतियों की विविध प्राजातियां हमें पौष्टिकता के साथ पुनर्जीवन देती रही है।

आज की इस दौर में इनके सहारे की जरूरत फिर से महसूस हो रही है। यहां के पारंपरिक चिकित्सा से दैनिक खानपान तक में जड़ी बूटियों, वनस्पतियों, उनके बीज और जड़ों का प्रचलन रहा है।
10 Best Lovely Valley in Uttarakhand
गिलोई, सरसों, जखिया, लांग, काली मिर्च से. लेकर तुलसी,अदरक, लौंग, गिलोय, एलोबेरा, जैसी कई वनस्पतिया है, जो बीमारियो को हराती है। इसलिए आपकी प्रकृति के साथ बढ़ाइए अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता और दूर भगाइए बीमारियां।
आयुर्वेद की प्रयोगशाला : देवभूमि उत्तराखंड (Laboratory of Ayurveda: Devbhoomi Uttarakhand)
आयुर्वेद विश्व की प्राचीनतम चिकित्सा प्रणालियों में से एक है। इसका अर्थ होता है- ‘जीवन का अमृत रूपी ज्ञान। आयुर्वेद की प्रयोगशाला कहे जाने वाले उत्तराखंड की बात करें तो यहां की धरती पर उगने वाली वनस्पतियां, उनकी जड़ें, फूल व बीज जीवन रक्षक औषधियां हैं, जो अपनी प्रतिरोधक क्षमता के कारण आदिकाल से ही प्रचलित रही हैं।
Read More >>>
Top 6 Adventure Tourism in Uttarakhand
10 Interesting Things of Uttarakhand
Devprayag Confluence of Alaknanda and Bhagirathi River
हमारी संस्कृति में अभी भी उनकी पूजा का विधान है। दूब (दुर्वा) घास, तुलसी, पदम, बटवृक्ष, आंवला, आम आदि वनस्पतियों का अपने औषधीय गुणों के कारण ही धार्मिक महत्व है। आयुर्वेद में जिन पौधों को शरीर के तमाम रोगों के लिए कारगर माना गया है, उनमें से अधिकांश उत्तराखंड में मौजूद हैं।
हमारे घरों के आसपास ही इतनी वनस्पतियां हैं, जिनका प्रयोग आज भी मौसमी बदलाव के साथ किया जाता है।खासकर कुमाऊं के पर्वतीय क्षेत्रों में, यानी शरीर को हमेशा दुरुस्त रखने के लिए औषधियां हमारे खानपान का भी हिस्सा रही हैं।
यही कारण रहा कि पहाड़ के बुजुर्ग आज भी अपने किस्सों में इन औषधियों का महत्ता और गुणों का बखान करते हैं। कुछ वनस्पतियां कुमाऊं में जगह-जगह आज भी मिल जाती हैं, मगर कुछ के लिए उच्च हिमालय की आबोहवा को मुफीद माना गया है,मगर इनकी उपलब्धता आज भी मौजूद है।
उत्तराखंड की 10 प्रसिद्ध आयुर्वेदिक जड़ी बूटियाँ (10 Famous Ayurvedic Herb of Uttarakhand)
भारत के हिमालयी राज्य उत्तराखंड में भी जैसे-जैसे शहरों का विकास हुआ वैसे- वैसे एलोपेथिक अस्पताल खुले। आयुर्वेद सीमित होता गया परंपरा से चली आ रहे कई रोगों के इलाज की सामान्य जड़ी-बूटियों का उपयोग भी होता रहा। अब प्राथमिकता एलोपैथी को दी जाने लागी।Ayurvedic Herb of Uttarakhand
इससे सबसे बड़ा नुकसान यह हुआ कि पहले जहां वैद्य की सलाह और परिवार के बड़े-बूढ़ों की निगरानी में हर सदस्य अपने आस-पास की जड़ी-बूटियां, भेषजों व वनस्पति की काफ़ी जानकारी जुटाए रखते थे उसका उपयोग व चलन धीरे-धीरे कम होता गया. रोजगार और कामधंधो की लिए शहर जाने और वहीं बस जाने की प्रक्रिया में परंपरागत ज्ञान लगातार खोता ही चला गया।
- जखिया : बढ़ाए खाने का स्वाद, रखे शरीर को निरोग
- काला जीरा : सर्दी-जुकाम खत्म करने में असरदार
- मेथी के दाने : तमाम रोगों का नाश करने में हैं कारगर
- तुलसी : धार्मिक महत्व और प्रसिद्ध आयुर्वेदिक में भी कारगर
- ब्राह्मी : बुद्विवर्धक और याददाश्त बढ़ाने में कारगर
- बुरांश : जूस के साथ फूल और पत्तियां भी हैं गुणकारी
- दूब : धार्मिक अनुष्ठान से लेकर औषधीय गुणों वाला घास
- पहाड़ी हल्दी : पवित्र, प्रतिरोधक और गुणकारी है पहाड़ी हल्दी
- जटामांसी : बढ़ाए खाने का स्वाद और प्रतिरोधक क्षमता
- चीड़ : कान के रोगों में उपयोगी
भारत के मध्य हिमालय की ऊँचे जंगलों में मिलने वाली जड़ी-बूटियों, वनस्पतियां स्वस्थ बनाये रखने, निरोग रहने व दीर्घायु जीवन प्रदान करने के लिए गुणकारी मानी गईं। इन ऊंच हिमालयी जड़ी-बूटियों और वनस्पतियों के एकल प्रयोग या फिर कइयों को एक साथ मेलजोल कर कई रोगों को जड़ से ख़तम करने के योगों का उल्लेख हुआ।
उत्तराखंड के प्रसिद्ध आयुर्वेदिक जड़ी बूटियाँ (Famous Ayurvedic Herb of Uttarakhand)
उत्तराखंड में वैद्यकीय पद्धति लगातार खोजबीन और प्रयोगों से आम आदमी के जीवन का हिस्सा बनती रहीं। सामान्य जन को भी अपने आसपास उगने वाली वनस्पति और पायी जाने वाली जड़ीबूटी की इतनी जानकारी होती जिससे वह रोजमर्रा के स्वास्थ्य सम्बन्धी विकारों को दूर कर सके। प्राचीन ग्रंथों में कहा गया कि उत्तराखंड हिमालय में ही देवराज इन्द्र ने भृगु ऋषि को निरोग रहने का ज्ञान दिया। उत्तराखंड के गढ़वाल हिमालय में आयुर्वेद (Ayurvedic Herb of Uttarakhand) के जनक वैद्यराज चरक द्वारा भी जड़ी बूटियों का संग्रह किया गया।
जखिया (Cleome viscosa) : पहाड़ का अद्भुत तड़का
ऊंचे पहाड़ों पर प्राकृतिक रूप से उगने वाले औषधीय गुणों से भरपूर पौधा है। इसके बीजों का तड़का जहां दाल, सब्जी के स्वाद को दुगना कर देता है, वहीं रायता, चटनी आदि में भी इसका इस्तेमाल किया जाता है। इसके पत्तियों की सब्जी स्वादिष्ट और गुणकारी होती है।
कहने को तो यह एक जंगली पौधा है, मगर इसके बीज में पाए जाने वाला प्रोटीन, फैटी एसिड, अम्ल, फाइबर, स्टार्च, कार्बोहाइड्रेट अमीनो विटामिन ई और सी समेत कई पोषक तत्व विभिन्न तरह के रोगों के इलाज में कारगर माने जाते हैं।
काला जीरा (Black Cumin)
जीरे का इस्तेमाल तो हर घर में होता है लेकिन आपको शायद ये ना पता हो कि जीरा केवल खाने में तड़का लगाने के लिए ही इस्तेमाल नहीं होता है, बल्कि छोटा सा दाने वाला यह बीज जीरा कई औषधीय गुणों से भरपूर है। यहां हम सामान्य जीरे की बात नहीं कर रहे हैं, बल्कि बात कर रहे हैं काले जीरे की जो अधिकांश घरों में इस्तेमाल होने वाले सामान्य जीरे से स्वाद में थोड़ा अलग और कड़वाहट लिए होता है।
काला जीरा सर्दी-जुकाम के इलाज में काफी असरदार बीज है। यह प्रतिरोधी क्षमता को बढ़ा कर घातक वायरस से लड़ने की ताकत देने वाला काला जीरा कई रोगों से छुटकारा दिलाने में मददगार है।
मसलन, कैंसररोधी, सर्दी-जुकाम, पेट संबंधी रोग मैथी के साथ काला जीरा पीस कर बनने वाला चूर्ण प्रयोग कीजिए। इसे भूनकर रुमाल में बांध सूंघने से श्वास नलि की सूजन कम होती है। नियमित सेवन से प्रतिरोधी ताकत तो बढ़ती ही है, हड्डियों को मजबूत बनाकर और थकान मिटाकर यह नई हमारे शरीर में नई ऊर्जा भी प्रदान है।
मेथी (Fenugreek)
कलेस्ट्रॉल लेवल कम करना हो, ब्लड शुगर लेवल कंट्रोल करना हो, वजन घटाना हो, पाचन से जुड़ी दिक्कतें दूर करनी हो, इन सारी समस्याओं का अगर कोई एक इलाज है तो वो है मेथी के दाने या फेनुग्रीक (Fenugreek), मेथी हरी सब्जी को स्वास्थ्य के लिए बेहद लाभकारी माना गया है। शीत ऋतु के साथ ही बदलते मौसम में मेथी के पत्तों की सब्जी मधुमेह व रक्तचाप के पीड़ितों के लिए रामवाण मानी गई है। खास बात यह कि पत्तियों के साथ ही दाने भी भिगोकर खाने से तमाम रोगों का नाश होता है। विटामिग. ए, बी व सी के अतिरिक्त कॉपर, जिंक, सोड्यिम, फोलिक एसिड मैग्नीशियम आदि तत्वों से भरपूर यह वनस्पति प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करती है और शरीर के लिए कारगर है।
तुलसी (Holy Basil)
तुलसी अपने धार्मिक महत्व के कारण हर घर के आंगन में उपलब्ध इस वनस्पति को दूसरी संजीवनी के नाम से भी इसकी पहचान है। सनतान धर्म में तुलसी का धार्मिक महत्व बहुत ही अधिक है। ओसीमम सेक्टम नाम का यह पौधा आगने एंटी माइक्रोविमल गुणों के कारण श्वास नली से जुड़े रोगों के उपचार में कारगर है। इसके साथ यह एंटी बैक्टीरियल का भी काम करता है। शास्त्रों में तुलसी के पौधे पूजनीय, पवित्र और देवी का दर्जा दिया गया है और तो और घर में तुलसी का पौधा लगाना भी का काफी हितकारी माना जाता है। साथ ही शास्त्रों में तुलसी के बारे में कई लाभ भी बताए हैं।

ब्राह्मी (Waterhyssop)
बकोपा मोन्नीएरी नाम का यह पौधा आपने बुद्विवर्धक गुण के कारण ब्रेनबूस्टर के नाम से भी जाना जाता है। ब्राह्मी एसिड, लाइकोसाइड, वैलेटिन आदि तत्वा व यौगिकों से भरपूर ब्राह्मी नदियों किनारे या फिर नमी वाले स्थानों पर होता है।
मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति में रोग प्रतिरोधक क्षमता अच्छी होने की मान्यता के अनुसार ब्राह्मी के महत्व को समझा जा सकता है। इसके अलावा हृदय रोग के उपचार के लिए भी यह वेहद उपयोगी है।
असली ब्राह्मी की पहचान है कि इसकी एक टहनी में कई सारे पत्ते होते हैं और इसके फूल सफेद और छोटे-छोटे होते हैं। आयुर्वेद के अनुसार ब्राह्मी बुद्धिवर्धक, पित्तनाशक, मजबूत याददाश्त, ठंडक देने के साथ शरीर से विषैले पदार्थों को बाहर निकालता है। कफ को दूर करने के अलावा यह खून को साफ कर त्वचा संबंधी रोगों में भी फायदेमंद है। मानसिक रोगों में ब्राह्मी के पत्तों का चूर्ण लाभदायक होता है। हृदय की दुर्बलता में इसका प्रयोग अतिउत्तम है।
बुरांश (Rhododendron)

बुरांश (Buransh) पहाड़ मे मिलन वाला बुरांश एक फूल है, मगर है बेहद गुणकारी | आयुर्वेद में तक इसके गुणों का जिक्र मिलता है। दरअसल, बुरांश का फूल हो या उसका रस, हमारे श्वसन तंत्र को मजबूत कर सांस संबंधी सभी रोगों के नाश की ताकत रखता है | इसके चूरे को यदि नाक में प्रवेश कराया जाए तो श्वास के रोगी को बड़ी राहत मिलती है। यही नहीं विशेषज्ञ वताते हैं कि वुरांश के सूखे फ्तों को तंबाकू के साथ मिलाकर धूम के रूप में लेने से दमा और पुरान खांसी से निजात मिलती है। बुरांश एक लाल रंग का फूल है जो उत्तरांखड का राज्य वृक्ष है। बुरांश का फूल नेपाल का राष्ट्रीय फूल भी है। इसके फूलों का इस्तेमाल दवाई बनाने के लिए किया जाता है। हिमालय के पर्वतीय क्षेत्रों में इसके फूलों से शर्बत भी बनाया जाता है। जब गर्मी का मौसम आता है तो बुरांश के वृक्ष में फूल आते हैं। बुरांश की दो प्रजातियों का प्रयोग चिकित्सा के लिए किया जाता है।
दूब घास (Scutch Grass)
दूब घास बारह मास हरी रहती है। इसी गुण के कारण हर एक धार्मिक अनुष्ठान का श्रीगणेश भी दूब घास से होता है। किसी भी शुभ कार्य, पूजन से पूर्व भगवान गणेश को दूब अर्पित करने का जिक्र पुराकाल से होता आया है।
एसिटिक एसिड, फेरिलीक एसिड, फाइबर, विटामिन ए एव सी की प्रचुरता के कारण यह मधुमेह, रक्त शुद्धि, मासिक धर्म नियंत्रणके अलावा प्रतिरक्षा प्रणाली को भी मजबूत करती है।
दूब घास का औषधीय गुण हमारे जीवन में बहुत महत्त्वपूर्ण संस्कारों का एक अध्याय है। जो हमारे जीवन में बहुत सी औषधीय के रूप में प्रयोग किया जाता है। इतना ही नहीं मधुमेह रोगी के लिये भी बहुत लाभकारी प्रमाणित किया जा चुका है। अगर हम पानी के साथ ताजी दूब धुलकर उबाल कर सेवन करें तो 59 प्रतिशत ब्लड शुगर लेवल कम कर देता है।
पहाड़ी हल्दी (Turmeric)
पहाड़ी हल्दी रासायनिक दवाइयों और खाद से परे पहाड़ की जैविक हल्दी जितनी गुणकारी है, उत्तनी ही पवित्र भी मानी जाती है। विश्वभर में हल्दी अपने औषधीय एवं औद्योगिक उपयोग के कारण अपनी एक विशिष्ट पहचान व स्थान रखती है।
भारत के उत्तरी हिमालयी राज्य उत्तराखंड की पहाड़ी हल्दी भी विश्वभर में हल्दी निर्यात एवं उत्पादन में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। गहरा पीलापन लिए हल्दी में जीवाणु व शुगर नाशक होने के साथ ही पेट के रोग, कैंसर आदि के इलाज का गुण भी है। Ayurvedic Herb of Uttarakhand
तमाम पोषक तत्वों से भरी एंटीऑक्सीडेंट हल्दी हमारी प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ा कर तमाम रोगों से लड़ने की अच्छी ताकत भी देती है। पहाड़ी हल्दी उत्तराखण्ड का बहुमूल्य उत्पाद है साथ में यह उत्तराखंड में पूजा पाठों शादी विवाहों और धार्मिक अनुष्ठान में भी प्रयाग में लाया जाता है।
जटामांसी (Spikenard)
जटामांसी उच्च हिमालयी क्षेत्र में पाई जाने वाली यह वनस्पति अवसाद और तनाव के साथ थकान मिटाती है। हृदय, बुखार, मस्तिष्क या सिर से जुड्ली समस्या हो या प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने, दिल और रक्तचाप आदि रोग दूर करने का उपाय। इस पौधे के रोएदार तने और जड़ अचूक औषधि है।
विषाणुओं से लड़ने की इसमें ताकत है। जटामांसी सहपुष्पी औषधीय पौधा होता है। जिसका प्रयोग तीखे महक वाला इत्र बनाने में किया जाता है। इसको जटामांसी इसलिए कहा जाता है क्योंकि जटामांसी की जड़ों में जटा या बाल जैसे तंतु लगे होते हैं। इनको बालझड़ भी कहते हैं। आयुर्वेद के अनुसार जटामांसी के फायदे इतने होते हैं कि आयुर्वेद में इसको कई बीमारियों के लिए औषधि के रुप में प्रयोग में लाया जाता है।
चीड़ (Pine)
यूं तो पर्वतीय राज्य में चीड़ को बनाग्नि का जनक और जमीन को बंजर बनाने वाली वनस्पति माना जाता है, मगर इसका बीज बड़े काम का है। अक्सर पहाड़ी इलाकों जैसे कि उत्तराखंड या हिमाचल में जब भी आप सैर के लिए जाते होंगें आपकी नजर चीड़ के ऊंचे ऊंचे पेड़ों पर पडती होगी। Ayurvedic Herb of Uttarakhand
आयुर्वेद में इस पेड़ को सेहत के लिए बहुत उपयोगी माना गया है। इसे आंचलिक बोली में दाम, स्थूत या पहाड़ी बादाम भी कहा जाता है। इससे निकलने वाले तारपीन के तेल और चिपचिपे गोंद का इस्तेमाल औषधि के रूप में किया जाता है। एंटी वायरल व वैक्टीरियल तथा प्रोटीन से लबरेज चीड़ में कार्वोह्नइड्रेट बहुत कम तो वसा स्वस्थ रूप में पाया जाता है। रोग प्रतिरोधक क्षमता भी यह बढ़ाता है। इसके अलावा इसकी लकडियां, छाल आदि मुंह और कान के रोगों को ठीक करने के अलावा अन्य कई समस्याओं में भी उपयोगी हैं।