पौड़ी गढ़वाल (Pauri Garhwal) उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल का सुन्दर और प्रकृति की गोद में बसा एक जिला है। यह अपने पौराणिक सांस्कृतिक (Mythological cultural), बलिदान (Sacrifice), शौर्य (Bravery) और अदम्य साहस (Indomitable Courage) के लिए जाना जाता है, इस जिले का मुख्यालय पौड़ी है।
पौड़ी गढ़वाल (Pauri Garhwal) का जिला मुख्यालय पौड़ी समुन्द्र तल से 1750 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है, और इसे एक हिल स्टेशन के रूप में भी जाना जाता है। यहां का वातावरण हमेशा सुन्दर, सुहाना और मनोरम रहता है। जिसके चलते पूरे देश भर से सैलानी यहां पर घुमने आते हैं।
पौड़ी गढ़वाल जिले में मुख्य दो नदियां बहती हैं, जिनके नाम अलकनंदा (Alaknanda) और नायर हैं। इसकी अलावा यहां महत्वपूर्ण नदियों में पश्चिमी रामगंगा, मालिनी, खोह नदियाँ भी हैं, पश्चिमी रामगंगा नदी पौड़ी गढ़वाल के दूधातोली पर्वत से निकली है और पौड़ी गढ़वाल में फिर से प्रवेश करने से पहले नैनीताल में प्रवेश करती है। नायर नदी इस ज़िले के क्षेत्र में प्रमुख नदी है और अलकनंदा की प्रमुख सहाय नदियों में से एक है। इसे सतपुली में पूर्वी और पश्चिमी नय्यर के संगम के बाद नायर/नय्यर नदी कहा जाता है।
Kotdwar A Gateway Of Garhwal
वहीं, अगर भाषा की बात करें तो पौड़ी गढ़वाल के ज़्यदातर लोग “गढ़वाली भाषा” बोलते हैं। खास बात यह है कि इस जिले के लोग भारतीय सेना (Indian Army) में भी काफी संख्या में अपनी सेवाएं देते रहे हैं। यही वजह है कि भारतीय फौज में गढ़वाल नाम से एक रेजमेंट भी बना हुआ है। जिसे “गढ़वाल राइफल्स ” (Garhwal Rifles) के नाम से जाना जाता है। इस कारण से आज पूरा पौड़ी गढ़वाल जिला आज अपने संस्कृति, शौर्य व अदम्य साहस के लिए पुरे भारत अपितु विश्वभर में जाना जाता है।
पौड़ी गढ़वाल (Pauri Garhwal) कोटद्वार के ‘भाबर’ क्षेत्रों की तलहटी से लेकर पहाड़ियों के बीच बसा हुआ है। इसकी बसावट 5230 वर्ग किलोमीटर के भौगोलिक क्षेत्र में है। पौड़ी गढ़वाल जिला एक गोले के रूप में बसा हुआ है। इस जिले के उत्तर में चमोली, रुद्रप्रयाग और टिहरी गढ़वाल है। वहीं, दक्षिण मे उधमसिंह नगर स्थित है, और इसी तरह पूर्व में अल्मोड़ा व नैनीताल जिले स्थित है। जबकि पश्चिम में देहरादून और गंगा किनारे बसा हरिद्वार जिला स्थित है।
Lansdowne A hill station of Garhwal
पौड़ी गढ़वाल (Pauri Garhwal) की भूमि बर्फ से लदे हिमालय की चोटियों, प्राकृतिक घाटियों, नदियों, घने जंगलों और मेहमाननवाजी एवं समृद्ध संस्कृति से पूर्ण लोगों से आशीषित हैं, जिस कारण हिमालय कि पर्वत श्रृंखलाएं इसकी सुन्दरता में चार चांद लगते है। पौड़ी गढ़वाल जिला कोटद्वार के ‘भाबर’ क्षेत्रों की तलहटी से लेकर 3,000 मीटर की ऊंचाई पर स्थित धुधोटोली के आत्मा को मोहने वाले घास के मैदानों में तक भिन्न भिन्न है जो सर्दियों के महीनों के दौरान बर्फ से ढकी रहती है ।
पौड़ी गढ़वाल की संस्कृति (Culture of Pauri Garhwal)
वैसी तो पूरा उत्तराखंड अपनी पौराणिक संस्कृति को लेकर पूरे देश भर में प्रसिद्ध है। पर बात करे पौड़ी गढ़वाल (Pauri Garhwal) जिले की इसकी बात ही कुछ अलग है। यह अपने शौर्य, बलिदान व अदम्य साहस के साथ साथ संस्कृति और परम्परा के लिए जाना जाता है।
यहां पर बोलचाल की भाषा में ज्यादातर लोग गढ़वाली भाषा का उपयोग करते हैं। लेकिन स्कूलों और सरकारी कार्यालयों में हिन्दी में काम होता है। साथ ही यहां के लोग अंग्रेजी भी अच्छी तरह से बोल लेते हैं। यहां के कला, सांस्कृतिक लोकगीत, संगीत और नृत्य की झलक पर्व-त्योहारों में देखने को मिलती है।
Tarkeshwar Mahadev Temple
यहां की महिलाएं जब खेतों में काम करती हैं या जंगलों में घास काटने जाती हैं तब अपने लोक गीतों को खूब गाती हैं। इसी प्रकार अपने अराध्य देव को प्रसन्न करने के लिए ये लोक नृत्य करते हैं जिसे की यहां की बोलचाली भाषा में “जागर” कहा जाता है।
पौड़ी गढ़वाल (Pauri Garhwal) के त्योहारों मे बिनसर महादेव मेला, देवी का मेला, भौं मेला, पटोरिया मेला, श्रीनगर का वैकुण्ठ चतुर्दशी मेला और मकर संक्रांति’ के दिन गिन्दी मेला प्रसिद्ध हैं। गढ़वाल में मकर संक्रांति जिसे उत्तरायनी भी कहा जाता है, इसे “खिचड़ी संक्राति” के रूप में मनाया जाती है जिसमें ‘उड़द दाल’ से खिचड़ी तैयार की जाती है, जिसे गढ़वाल के पहाड़ो में बसे लोग घर में बने देसी घी के साथ परोसा जाता है, और ब्राह्मणों को चावल और उड़द दाल दान की जाती है। इस दिन पौड़ी गढ़वाल के डंडामंडी, थलनदी आदि विभिन्न स्थानों पर गिन्दी मेलों का आयोजन किया जाता है।
पौड़ी गढ़वाल का इतिहास (History of Pauri Garhwal)
पौराणिक काल में पुरे भारतवर्ष में राजे रजवाड़े निवास करते थे। तब के समय पुरे भारत में अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग राजवंशों का शासन हुआ करता था, जिस कारण उस समय पूरा भारत अलग अलग हिसो में विभाजित रहता था। इसी प्रकार उत्तराखंड के पहाड़ों में सबसे पहला राजवंश “कत्युरी” था।
Kanvashram Birthplace of Emperor Bharat
कत्युरी राजवंश ने पुरे उत्तराखंड पर शासन किया और शिलालेख और मंदिरों के रूप में मुख्य महत्वपूर्ण निशान छोड़ गए जो आज भी उत्तराखंड के विभिन्न स्थानों पर मौजूद है। कत्युरी राजवंश के पतन के बाद में, यह माना जाता है कि गढ़वाल क्षेत्र 64 (चौसठ) से अधिक रियासतों में विखंडित हो गया और मुख्य रियासतों में से एक चंद्रपुरगढ़ अधिक समय तक शासन करता रहा और एक शक्तिशाली रियासत के रूप में उभरा, जिस पर कनकपाल के वंशजो शासन था।
15 वीं शताब्दी के अंत में अजयपाल ने चंदपुरगढ़ पर सिंहासन किया और कई रियासतों को उनके सरदारों के साथ एकजुट करके एक ही राज्य में समायोजित कर लिया और इस राज्य को गढ़वाल के नाम से जाना जाने लगा। इसके बाद उन्होंने 1506 से पहले अपनी राजधानी चांदपुर से देवलगढ़ और बाद में 1506 से 1519 ईसवी के दौरान श्रीनगर स्थानांतरित कर दी थी।
राजा अजयपाल और उनके उत्तराधिकारियों ने लगभग तीन सौ साल तक गढ़वाल पर शासन किया था, इस अवधि के दौरान उन्होंने कुमाऊं, मुगल, सिख, रोहिल्ला के कई हमलों का सामना किया था। गढ़वाल के इतिहास में गोरखा आक्रमण एक महत्वपूर्ण घटना थी। यह अत्यधिक क्रूरता के रूप में चिह्नित थी और ‘गोरखायनी’ शब्द नरसंहार और लूटमार सेनाओं का पर्याय बन गया था।
डोटी और कुमाऊं पर कब्जा करने के बाद गोरखों ने गढ़वाल पर आक्रमण कर दिया. 1804 में गोरखा पूरे गढ़वाल को अपने अधीन कर लिया। कहा जाता है कि गोरखों ने कई वर्षों तक गढ़वाल पर शासन किया था। इसके बाद 1815 में अंग्रेजों ने गोरखों के जबरदस्त विरोध और चुनौती पेश करने के बावजूद उन्हें यहां से खदेड़ कर काली नदी के पार भेज दिया। फिर 21 अप्रैल 1815 को अंग्रेजों ने पूरे क्षेत्र को अपने कब्जे में ले लिया. हालांकि, यह भी गुलामी ही थी लेकिन अंग्रेजों ने गोरखों की तरह क्रूरता नहीं दिखाई. अंग्रेजों ने पश्चिमी गढ़वाल क्षेत्र अलकनंदा और मंदाकिनी नदी के पश्चिम में अपना राज स्थापित कर लिया था.
आजादी के समय, गढ़वाल, अल्मोड़ा और नैनीताल जिलों को कुमाऊं डिवीजन के आयुक्त द्वारा प्रशासित किया जाता था । 1960 के शुरुआती दिनों में, गढ़वाल जिले से चमोली जिले का गठन किया गया । 1969 में गढ़वाल मण्डल पौड़ी मुख्यालय के साथ गठित किया गया । 1998 में रुद्रप्रयाग के नए जिले के निर्माण के लिए जिला पौड़ी गढ़वाल के खिर्सू विकास खंड के 72 गांवों के लेने के बाद जिला पौड़ी गढ़वाल आज अपने वर्तमान रूप में पहुंच गया है।
पौड़ी गढ़वाल के पर्यटक स्थल (Tourist places of Pauri Garhwal)
पौड़ी गढ़वाल (Pauri Garhwal) पर्यटन और घूमे वालो के लिहाज से भी काफी सम्पन्न जिला है। यहां के पर्यटन स्थल में(Pauri Garhwal)मुख्यालय में स्थित कंडोलिया का भगवान शिव का मन्दिर और भैरोंगढ़ी में भैरव नाथ का मंदिर के अलावा बिनसर महादेव, खिर्सू, ताराकुण्ड, ज्वाल्पा देवी मन्दिर , नील कंठ महादेव का शिव मंदिर, भगवान शिव का ताड़केश्वर महादेव मंदिर, देवी खाल का मां बाल कुंवारी मंदिर, कोटद्वार का भरत जन्मभूमि करणवाश्रम, सिद्धबली धाम मंदिर, लैंसडौन हिल स्टेशन, दुर्गा देवी मंदिर प्रमुख पर्यटक स्थल हैं।
Durga Devi Temple Kotdwar
पौड़ी गढ़वाल कैसे पहुंचें (How to reach Pauri Garhwal)
यहां का सबसे नजदीक हवाई अड्डा देहरादून काजोली ग्रांट हवाई अड्डा है यह पौड़ी (Pauri) से लगभग 130 किमी की दुरी पर स्थित है। और सबसे नजदीक रेलवे स्टेशन कोटद्वार ओर योग नगरी ऋषिकेश हैं।
कोटद्वार ओर ऋषिकेश को गढ़वाल के प्रवेश द्वार के लिए जाना जाता है, यहां से गढ़वाल हिमालय की पहड़ियो में प्रवेश का रास्ता निकलता है जो चार धाम तक जुड़े हुए है। वहीं, सड़क मार्ग की बात करें तो यह जिला हरिद्वार, ऋषिकेश, कोटद्वार, एवं देहरादून व अन्य राज्य दिल्ली, उत्तरप्रदेश, और हिमाचल से जुड़ा हुआ है।