उत्तराखंड को वीरों (Warriors of Uttarakhand) की घरती यूं ही नहीं कहा जाता है। 1971 का इंडो-पाक युद्ध में उत्तराखंड के वीर योद्धा (Warriors of Uttarakhand in 1971 War) भी इसी शौर्य का प्रतीक है। यहाँ के वीर योद्धाओ ने समय समय पर अपनी बहादुरी का लोहा मनवाया है। भारतीय सेना की इस विजयगाथा में उत्तरखंड के वीर रणबांकुरों (Warriors of Uttarakhand) का बलिदान भुलावा नहीं जा सकता।
दिसंबर का सर्द महीना और 1971 की 16 तारीख जैसे ही ये दिन सामने आता है हर किसी के जेहन में भारत की सबसे बड़ी जीत की यादें ताजा हो जाती है 1971 मे भारत ने पाकिस्तान को युद्ध (1971 Indo Pak War) में ना सिर्फ मात दी। बल्कि दुनिया में एक बड़ी ताकत बनकर भी उभरा।
यही नहीं भारत ने इस ऐतिहासिक लड़ाई के साथ पाकिस्तान के भी दो टुकड़े कर डाले,13 दिन चले इस युद्ध में भारत के वीर जांबाजों ने पाकिस्तान को धूल चटा दी। इसके साथ ही बांग्लादेश को भी पाकिस्तान से आजाद कराया।
1971 युद्ध में उत्तराखंड के वीर योद्धा (Warriors of Uttarakhand in 1971 war)
उत्तराखंड के वीर योद्धाओ (Warriors of Uttarakhand) के अदम्य साहस का लोहा पूरी दुनिया ने माना। 1971 के जंग में दुश्मन सेना से दो-दो हाथ करने वाले सूबे के 74 जांबाजों को वीरता पदक मिले थे। इस युद्ध में उत्तराखंड प्रदेश के 255 वीर योद्धाओ ने मातृभूमि की रक्षा के लिए कुर्बानी दी थी। रण में दुश्मन से मोर्चा लेते हुए राज्य के 78 सैनिक घायल हुए।
शौर्य और साहस की यह गाथा आज भी भावी पीढ़ी में जोश भरती है। यही कारण है आज भी उत्तराखडं में जन्मा हर एक बालक सबसे पहले देश की सेवा के लिए जाना चलता है। 1971 मे हुए भारत-पाकिस्तान युद्ध में दुश्मन सेना पाकिस्तान को नाको चने चबवाने में उत्तरखंड के जवान पीछे नहीं रहे।
तत्कालीन सेनाध्यक्ष सैम मानेकर्श (बाद में फील्ड मार्शल) और बांग्लादेश में पूर्वी कमान का नेतृत्व करने वाले सैन्य कमांडर ले. जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा ने भी जवानों के साहस को सलाम किया। युद्ध में शरीक होने वाले थलसेना, नौसेना व वायुसेना के तमाम योद्धा जंग के उन पलों को याद कर जोशीले हो जाते हैं।
1971 युद्ध की विजय गाथा संजोए है आईएमए (IMA embodies the victory story of 1971 war)
16 दिसंबर 1971 ही वह दिन था। जब पाकिस्तान के लेफ्टिनेंट जनरल एके नियाजी ने करीब 90 हजार सैनिकों के साथ भारत के लेफ्टनेंट जनरल जसजत अरोड़ा के सामने आत्मसमर्पण कर हथियार डाल दिए थे।
जनरल नियाजी के आत्मसमर्पण करने के साथ ही वह युद्ध भी समाप्त हो गया। इस दौरान पाकिस्तान के लेफ्टिनेंट जनरल निवाजी ने अपनी पिस्तैल जनरल अरोड़ा को सौंप दी। भारतीय सैन्य अकादमी (IMA-Indian Military Academy Dehradun) देहरादून में रखी यह पिस्तौल आज भी भावी सैन्य अफसरों में जोश भरने का काम करती है।
ये लेफ्टिनेंट जनरल नियाजी की पिस्तौल है जो 1971 की जंग में भारतीय फौज के शौर्य को बताती है नियाजी ने बिना शर्त 90 हजार पाक सैनिको के साथ भारत के आगे आत्मसमर्पण किया था जो दुनिया का अबतक का सबसे बड़ा फौजी आत्मसमर्पण है । |
भारतीय सेना (Indian Army) का गौरवशाली इतिहास हमेशा से ही युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत रहा है भारतीय सैन्य अकादमी (IMA) के म्यूजियम में रखी 1971 भारत-पकिस्तान युद्ध (1971 Indo Pak War) की ऐतिहासिक घरोहरें और दस्तावेज युवा अफसरों को अपने गौरवशाली इतिहास और परंपरा को कायम रखने की प्रेरणा देता है। इनमे सबसे प्रमुख जनरल नियाजी की पिस्तौल है।
ईस्टर्न कमांड के जनरल ऑफिसर कमाडिंग ले. जनरल अरोड़ा ने यह पिस्तौल आइएमए के गोल्डन जुबली वर्ष 1982 में आइए्मए को प्रदान की। इसी युद्ध से जुडी दूसरी वस्तु एक पाकिस्तानी ध्वज है, जो आइएमए में उल्टा लटका हुआ है। इस ध्वज को भारतीय सेना ने पाकिस्तान की 31 पंजाब बटालियन से सात से नौ सितम्बर तक चले सिलहत युद्ध के दौरान कब्जे में लिया था। जनरल राव ने भारतीय सैन्य अकादमी (IMA) देहरादून के गोल्डन जुबली वर्ष मे यह ध्वज अकादमी को प्रदान किया।
1971 की भारत पाक युद्ध के बारे में अहम फैक्ट्स (Important facts about 1971 Indo-Pak war)
- भारत-पाक युद्ध प्रभावी रूप से उत्तर-पश्चिम भारत के हवाई क्षेत्र मे पाकिस्तान वायु सेना (PIF), द्वारा हवाई हमले के बाद शुरू हुआ जिसमें अगरा अपने ऑपरेशन चंगेज खान के हिस्से के रूप में शमिल था। ताजमहल को पाकिस्तान के विमान से छुपाने के लिए टहनियों और पतियों का उपयोग कर ढका गय था।
- भारतीय वायु सेना ने पश्चिमी मोर्चे पर लगभग 4000 और पूर्व में दो हजार के करीब उड़ने भरी, वही, पाकिस्तान एयरफोर्स ने दोनों मोर्चो पर लगभग 2800 और 30 सामरिक उड़ने ही भर सका था। भारतीय एयरफोर्स ने युद्ध की अंत तक पाकिस्तान एयरफोर्स के हवाई ठिकाने पर छापे मारे।
- सोवियत संघ ने अपने मुक्ति आंदोलन और युद्ध मे भारत के साथ पूर्वी पाकिस्तान का पक्ष लिय। दूसरी ओर रिचर्ड निक्सन की अध्यक्षता मे यूएसए ने आर्थिक और भौतिक रूप से पकिस्तान का समर्थन किया। अमेरिका युद्ध की समाप्ति की दिशा में समर्थन के प्रदर्शन के रूप में बंगाल की खाड़ी में विमान को तैनात करने लिए गया था।
- युद्ध के अंत में , जनरल आमिर अब्दुल्ला खान नियाजी के नेतृत्व मं लाभग 93,000 पाकिस्तानी सैनिको ने १६ दिसंबर 1971 को भारतीय सेना के सामने आत्मसर्पण कर दिया।
- पाकिस्तान युद्ध की बाद अपनी आधी आबादी गवां चूका था, क्योकि बांग्लादेश पश्चिम पाकिस्तान की तुलना में अधिक आबादी वाला था।
- बांग्लादेश की आजादी की लड़ाई के समय मुक्त वाहनी का गठन हुआ। इसका मकसद पकिस्तानी सेना के अत्याचार से अपने लोगो की रक्षा करना था। मुक्त वाहिनी गुरिल्लाओं ने पाकिस्तानी सैनिकों के ख़िलाफ लड़ने के लिए भारत के साथ हाथ मिलाया, उन्होने भारतीय सेना से हथियार और प्रशिक्षण प्राप्त किया।